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Saturday, September 8, 2012
पिलानी के पत्ते कुछ
शाख पिलानी के एक पेड़ की,
पत्ते थे कुछ रंग बिरंग
अनोखे, मदमस्त, छबीले
हँसते गाते थे संग संग
फिर कुछ यूँ एक हवा चली
पत्तों ने कहा अलविदा
उड़ चले वो इक नयी दाल पर
राहें उनकी जुदा जुदा
पर आज भी...
यादें मयस्सर है उस फिजां में
ज़ज्बात है जिंदा इस ज़हान में
नूर-ए-दोस्ती उन पत्तों की
दमक रही है आसमान में ....
चुस्की चाय की
चुस्की चाय की
थोडा मुस्कुरा जाती है,
थोडा गुदगुदा जाती है,
चाय की यह चुस्की ,
यादें कई जगा जाती है...
समय का न कोई बंधन,
चाय से है ऐसा अपनापन,
सुबह हो या शाम, या ढलती रात,
इसकी चुस्की में है कोई तो बात,
जो खुमारी एक जगा जाती है.
दोस्तों का साथ,
हाथों में चाय का ग्लास,
बातें कुछ बकवास,
अपनेपन का एहसास,
चुस्की यह जगा जाती है.
थोडा मुस्कुरा जाती है,
थोडा गुदगुदा जाती है,
चाय की यह चुस्की ,
यादें कई जगा जाती है...
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