मुद्दत के बाद अनायास ही आया ये ध्यान
जज्बात थे कोमल या हम थे नादान
यादों की दस्तक थी और लम्हों की मनमानी
साँसों में कुछ यूँ बस गया था पिलानी|
वो खुमारी थी, वो खिखिलाहटें
वो दोस्ती यारी औ वो चाहतें
बेफिक्री बेपरवाह लड़कपन के छीटें
शिद्दत से गीले होने की हसरतें|
वो FD वो रेडी वो भवन
साइकलों संग रेस लगाता शिथिल जीवन
Lectures Tuts के पचड़ों के बीच
चाय के दो घूँट के लिए कसमसाता मन
C 'not के कुर्सियों पर रोजाना
बनते थे अनगिनत कीर्तिमान
माँ शारदा की वो उजली मुस्कान
परिन्दों के मानिंद आशाओं की उड़ान|
Clock tower के पीछे से झांकती
वो नटखट अधमुंदी शाम
शिवगंगा के पनघट पर दौड़ते
किलकारियों के घोड़े बेलगाम|
शायद वो इक ख्वाब था
दिल के मौजों का शबाब था
पलक झपकते ही ख़त्म हो गयी कहानी
साँसों में कुछ यूँ बस गया है पिलानी|
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