Thursday, December 27, 2012

सैनिक की शैय्या



As a nation, we always tend to forget invaluable things and rather cling on to petty, trivial matters. Today, on 16th December, Vijay Diwas , I salute the martyrs who sacrificed their life for our nation and wish everyone remember and respect their courage & valor. This poem is about a martyr, who is lying on his death-bed, trying to connote his feelings, find the meaning of war and console his weeping mother.

सैनिक की शैय्या

ममता के इस झड़ने से
बेबाक बरसते मोती क्यूँ है।
सारा जग चुप है माँ
तू रोती क्यूँ है ??

सहर के किरणों सम पीले
हो रहे जिंदगी के धागे
विगत जीवन की धुंधली छाया
घूम रही आँखों के आगे।
मायूस मजबूर हो रहे है
दिल के ये धड़कन बेचारे
छूट रही तेरे आँचल की कोर
छूट रहे है रिश्ते सारे।
तेरे हाथों के आखिरी कौर
हो सके न मयस्सर मेरे
बार बार यही प्रश्न
पूछ रहे है अश्रु तेरे।

अपरिचित, अविदित
ये लड़ाई होती क्यूँ है ?
सारा जग चुप है माँ
तू रोती क्यूँ है ??

ये लड़ाई ना जागीर की थी,
ना मुल्कों के तहरीर की थी।
ये तो बुलबुले सी क्षणिक ,
शहीदों के तकदीर की थी।
ये ना आग उगलते तोपों की थी,
ना ही बंदूकों, गोली की थी।
ये तो बेगाने सैनिकों के
गर्म खून के होली की थी।
ये ना हार के कंपन की थी,
ना जीत के दर्पण की थी।
ये तो देशभक्तों के
अंतिम क्षणों के तड़पन की थी।

सिन्धु की ये स्वर्णिम लहरें
आज सुर्ख लाल होती क्यूँ है।
सारा जग चुप है माँ,
तू रोती क्यूँ है ??

गर याद सताए मेरी  माँ,
दुखी ना होना अंतर्मन में।
जिस मिट्टी पर हुआ निछावर,
पा लेना उसके कण-कण में।
छलकाओं मत ये आँसू माँ,
कैसे मैं ये सह पाउँगा?
बिखेर दो वही मोचन मुस्कान,
मुठ्ठी भर संग ले जाऊंगा।
सुना दो आज फिर से लोरी माँ,
मैं मीठी नींद सो जाऊंगा।
ना करूँगा अठखेलियाँ,
ना फिर कभी तुझे सताऊंगा।

शांत शिथिल पवन में भी,
लड़खड़ाती जीवन-ज्योति क्यूँ है,
सारा जग चुप है माँ,
तू रोती क्यूँ है ....

शब्दावली (Glossary )
सहर - morning
मयस्सर - available
अविदित - unknown
तहरीर - liberation
क्षणिक - ephemeral
कंपन - vibration
अंतर्मन - subconscious mind
मोचन - liberating
अठखेलियाँ - mischief
शिथिल - immobile

PS : Special thanks to pyaari Didi Swati Sonal for her invaluable suggestions & edits :-)

Saturday, September 8, 2012

पिलानी के पत्ते कुछ


शाख पिलानी के एक पेड़ की,
पत्ते थे कुछ रंग बिरंग
अनोखे, मदमस्त, छबीले

हँसते गाते थे संग संग

फिर कुछ यूँ एक हवा चली
पत्तों ने कहा अलविदा
उड़ चले वो इक नयी दाल पर
राहें उनकी जुदा जुदा

पर आज भी...

यादें मयस्सर है उस फिजां में
ज़ज्बात है जिंदा इस ज़हान में
नूर-ए-दोस्ती उन पत्तों की
दमक रही है आसमान में ....

चुस्की चाय की



चुस्की चाय की 



 


थोडा मुस्कुरा जाती है,
थोडा गुदगुदा जाती है,
चाय की यह चुस्की ,

यादें कई जगा जाती है...

 



 


समय का न कोई बंधन,
चाय से है ऐसा अपनापन,
सुबह हो या शाम, या ढलती रात,
इसकी चुस्की में है कोई तो बात,
जो खुमारी एक जगा जाती है.

 


 
 
दोस्तों का साथ,
हाथों में चाय का ग्लास,
बातें कुछ बकवास,
अपनेपन का एहसास,
चुस्की यह जगा जाती है.

 





थोडा मुस्कुरा जाती है,
थोडा गुदगुदा जाती है,
चाय की यह चुस्की ,
यादें कई जगा जाती है...


Tuesday, July 10, 2012

ओ वूमनिया - एक विवेचन

यह गीत "Gangs of Wasseypur" फिल्म से लिया गया  है. गाने के बोल लिखे है वरुण ग्रोवर ने और इसे संगीत से सजाया है स्नेहा खंवालकर ने. यह गाना फिल्म के कलाकार मनोज वाजपेयी और रीमा सेन पर फिल्माया गया है. गीत में श,  ड़  और ण के उच्चारण तथा पटना, सिवान के जिक्र से साफ़ मालूम पड़ता है की ये मूलतः बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है.  गीत का प्रमुख उद्देश्य है काल्पनिक किरदार " वूमनिया" के जटिलता को दर्शाना. गीत पूरी तरह से स्लेशार्थक है और गीत का  निर्वचन श्रोता की मनोदशा पर निर्भर करता है .

आलाप -
"ताड़े जो बबुना तड़ती बबुनी
बबुना के हत्थे न चढ़ती बबुनिया "
 जब बाबू साहेब वूमनिया को निहार रहे है तो वूमनिया को भी इसमें आनंद प्राप्ति हो रही है .  दूसरे पंक्ति के शाब्दिक अर्थ पर ना जाये. क्यूंकि अगर रीमा सेन जैसी भारी भरकम महिला अगर मनोज वाजपेयी के हाथ पर सीधे चढ़ जाए तो रामाधारी सिंह से बदला लेना तो दूर , वाजपेयी जी अपने नित्य क्रिया कलापों को करने में भी असमर्थ हो जायेंगे. गीतकार का तात्पर्य ये है की बबुना से आँखें चार होने के बावजूद वूमनिया आसानी से खुद को समर्पित नहीं करती है.

पुनरावर्ती -
ओ वूमनिया , ओ वूमनिया ....
नेपथ्य से और गायिका द्वारा वूमनिया को बारम्बार संबोधित किया जाता है. इसका आशय ये है की वूमनिया थोडा ऊंचा सुनती है. क्यूँकी जब गायिका अकेले दम पर वूमनिया का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाती है तो वो अपने सहेलियों को भी उसे संबोधित करने को कहती है. ये लय पूरे गाने में बरक़रार है और गायिका की पंक्तियों को १-२ बार दोहराने के बाद ही वूमनिया का ध्यान आकृष्ट होता है.

अंतरा -
"मांगे जो बबुना प्रेम निशनियाँ
बोले जो ठोडी, कटिहो कनिया
बदले रुपैया के दे ना चवनियाँ
सैय्या जी झपटे तो होना हिरनिया "
यहाँ वूमनिया को सावधान किया जा रहा है की जब बबुना उससे प्रेम के प्रतीक की मांग करे , जो उसे ठोडी पर चुम्बन देने के बजाय उसका कान काट ले. जाहिर है वूमनिया पर "Return on Investment" काफी कम है. उसे सलाह दी जा रही है की २५% return काफी है बबुने के लिए. जाहिर है इससे बबुना आवेश में आ जाएगा और वूमनिया पर झपटने की कोशिश करेगा. ऐसा होने की सम्भावना पर पहले ही विचार किया जा चुका है और ऐसी परिस्थिति में वूमनिया को चपलता से हिरण सामान भागने की सलाह दी गयी है. इससे प्रतीत होता है की वूमनिया कोई आसान शिकार नहीं है और उसे पाने के लिए बबुना का काफी पापड़ बेलने पड़ेंगे.

"रह रह कर मांगे चोली बटनिया
जी में लुकाये लोट- लोतनियाँ
चाहे मुझौसा जब हाथ सिकनियाँ
कन्धा में देना जी दांत बुकनिया "
बबुना काफी निर्लज और छिछोरा किस्म का मालूम पड़ता है. वूमनिया को आगाह किया जा रहा है की जब वो चोली के बटन की मांग करे , तो उसकी वास्तविक इच्छा उसके साथ लोट पोट करने की है . उसके बाद गीतकार ने श्रोता को क्षणिक दुविधा में डाल दिया है. वूमनिया का शरीर बुखार से भी गर्म हो सकता है और हो सकता है बबुना उस पर हाथ सेंक कर उसकी पीड़ा कम करने की कोशिश कर रहा हो. परन्तु जिस प्रकार बबुने को गाली से नवाज़ा गया है और वूमनिया की हिंसक प्रवृति को दर्शाया गया है उससे जाहिर है की बबुना की मंशा ठीक नहीं होगी. ऐसे में वूमनिया को बबुना के कंधे में दांत गडा देने के लिए उकसाया गया है. चूँकि ये गीत वूमनिया केन्द्रित है, उसमे बबुना की पीड़ा को महत्व नहीं दिया गया है .

"बोलेगा बबुना चल जयिहो पटना
पटना बहाने वो चाहेगा सटना
दयिहो ना बबुना को टिकेट कटनिया
पटना ना जाना चाहे जाना सिवानियां"
वूमनिया द्वारा इतनी बार दुत्कारे जाने के बाद ये अनुमान लगाया जा रहा है की बबुना एक स्वांग रचेगा और उसे पटना ले चलने का आग्रह करेगा. दरअसल इसके पीछे उसका असली मकसद वूमनिया के करीब होना होगा. पटना तो बस एक बहाना होगा. ऐसे में वूमनिया को समझाया जा रहा है की बबुना को किसी भी स्थिति में टिकट नहीं कटाने दे, चाहे इसके कारण उसे सिवान ही क्यों ना जाना पड़े .

गीत के अंदाज़ से ये प्रतीत होता है वूमनिया थोड़ी विकट और बोक्की किस्म की नारी है. इसलिए उसकी मीमांसा को महत्व नहीं दिया गया है और उसे हर कदम पर गुमराह करने की कोशिश की गयी है. उसे अनेक मौकों पर हिंसक और सख्त कदम लेने को उकसाया गया है . कुल मिलाकर यह गाना काफी उच्चतम श्रेणी का है. गीतकार ने काफी मंझे हुए अंदाज़ में वूमनिया की नाकाबिलता को पेश किया है. और उतने ही बेहतरीन अंदाज़ में उसे कदम - कदम पर मसालेदार सलाह भी दी गयी है .

Thursday, May 10, 2012

Anaayaas





मुद्दत के बाद अनायास ही आया ये ध्यान
जज्बात थे कोमल या हम थे नादान
यादों की दस्तक थी और लम्हों की मनमानी
साँसों में कुछ यूँ बस गया था पिलानी|

वो खुमारी थी, वो खिखिलाहटें
वो दोस्ती यारी औ वो चाहतें
बेफिक्री बेपरवाह लड़कपन के छीटें
शिद्दत से गीले होने की हसरतें|

वो FD वो रेडी वो भवन
साइकलों संग रेस लगाता शिथिल जीवन
Lectures Tuts के पचड़ों के बीच
चाय के दो घूँट के लिए कसमसाता मन

C 'not के कुर्सियों पर रोजाना
बनते थे अनगिनत कीर्तिमान
माँ शारदा की वो उजली मुस्कान
परिन्दों के मानिंद आशाओं की उड़ान|

Clock tower के पीछे से झांकती
वो नटखट अधमुंदी शाम
शिवगंगा के पनघट पर दौड़ते
किलकारियों के घोड़े बेलगाम|

शायद वो इक ख्वाब था
दिल के मौजों का शबाब था
पलक झपकते ही ख़त्म हो गयी कहानी
साँसों में कुछ यूँ बस गया है पिलानी|

Nukkad ka Naai

Getting rid of my already scarce hair is the least productive task for me. Especially, at home, when I am at total peace with the big, bad world. Repitive threats(is ghar ke darwaze tumhare liye hamesha ke liye band ho jayenge) and humble requests(kitna sundar beta tha mera, ab rakshas jaisa lagta hai) from my mother , don't do any good. But, a quick reminder from my sister-"Aaj chhath hai, shaam me bahut saari ladkiyaan bhi aayengi ghat par" got my nerves ticking. Placing my energy-broke, letharigc body on my scooty, I was en route the famous "Chhedi nai ki dukaan".
After placing myself comfortably in the creeky, wooden chair, which was rude to my ass, I explained him in Hindi-'side se chhota kar dijiyega'. After ages of 'salp-salp cut maadi', it felt good.In joyous fit, I gave him few more instructions and went to slumber. Suddenly, I realized "Sweeney Todd-the demon barber of fleet street" wielding his blood-dripping razor in front of me. Before, I can plead for mercy, I was woken up by the calm voice of Chhedi-"Sir, shave kar de?" I swayed my fingers over my beard in Prem Chopra style-"I love you so much honey. But I'm not too sure whether chicks dig for you or not. To be on safer side, I've to bid farewell to you". Instead of waiting for my response, the barber had begun with his mowing act.
After Chhedi was done, I got up to give my already numb ass , much needed rest and head back to home. "sir, aaj to mangalwar hai, bajrang bali ka din! aapke balishtha bhujaon ki aisi maalish kar dete hai ki hanuman jee bhi khush ho jayenge"Strong! I gave a slanted look to my biceps, flexed it and gave a self-appreciating, Chandler grin" Signalling a go-ahead, he pounced upon me like a monster, as if I was his age old enemy in wrestling arena, twisting and turning my body parts at all possible angles. Whole action lasted for around 15 min, during which my ears were twisted, chest was punched, neck was rotated full monty and what not. And I am not complaining. For a software engineer, who is accustomed of sitting whole day in stupid rotating chair, it felt like a boon. After finishing up his job, Chhedi admiringly stared at me for 2 long minutes, as if I was his creation and he's so content with it. He demanded 100 bucks from me, to which I willingly obliged. "Huh, Bangalore would have extorted at least 200 bucks for such a service."

Proudly, I narrated this incident to one of my neighbor, to which he smilingly quipped-"Apna wahi chamkeela half-pant pehen kar gaye hoge. Bangalore ka dude samajh kar duguna paisa vasool liya ee chhediya!" I looked at his skinny figure and then at my flexed biceps and murmured "services are charged based on subject"