थोडा मुस्कुरा जाती है,
थोडा गुदगुदा जाती है,
चाय की यह चुस्की ,
यादें कई जगा जाती है...
समय का न कोई बंधन,
चाय से है ऐसा अपनापन,
सुबह हो या शाम, या ढलती रात,
इसकी चुस्की में है कोई तो बात,
जो खुमारी एक जगा जाती है.
दोस्तों का साथ,
हाथों में चाय का ग्लास,
बातें कुछ बकवास,
अपनेपन का एहसास,
चुस्की यह जगा जाती है.
थोडा मुस्कुरा जाती है,
थोडा गुदगुदा जाती है,
चाय की यह चुस्की ,
यादें कई जगा जाती है...
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